अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : भारतीय महिलाओं का देश की प्रगति में योगदान

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : भारतीय महिलाओं का देश की प्रगति में योगदान
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक मज़दूर आंदोलन की उपज है । अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत आज से 116 वर्ष पहले यानी वर्ष 1908 में हुई थी, जब अमरीका के न्यूयॉर्क शहर में क़रीब 15 हज़ार महिलाएं सड़कों पर उतरी थी । इन महिलाओं ने काम के कम घंटे , उचित वेतन और वोटिंग के अधिकार की मांग के लिए प्रदर्शन किया था । महिलाओं के इस विरोध प्रदर्शन के एक वर्ष पश्चात अमरीका की सोशलिस्ट पार्टी ने प्रथम राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की घोषणा की ।
महिला दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाने का विचार एक महिला क्लारा ज़ेटकिन का था । क्लारा ज़ेटकिन ने वर्ष 1910 में विश्व स्तर पर महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव किया था । क्लारा उस समय यूरोपीय देश डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन में कामकाजी महिलाओं की अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में भाग ले रही थी । इस कांफ्रेंस में उस समय 17 देशों से आई 100 महिलाएं भाग ले रही थी । इन सभी महिलाओं ने सर्वसम्मति से क्लारा के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया था । इस तरह पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस वर्ष 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटज़रलैंड में मनाया गया था । जिसमें रैलियों में दस लाख से अधिक सहभागी सम्मिलित हुए थे । इसका शताब्दी समारोह वर्ष 2011 में मनाया गया था ।
इस तरह के आयोजन का राजनीति में मतलब दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन और हड़ताल का आयोजन करना होता है ।
अब पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है ।
वर्ष 1917 में रूस में महिलाओं ने ‘ब्रेड एंड पीस ‘ की मांग करते हुए चार दिनों तक हड़ताल की । इसके बाद रूस के बादशाह ज़ार निकोलस को अपना पद छोड़ना पड़ा । इसके बाद रूस में बनी अस्थायी सरकार ने महिलाओं को वोट करने का अधिकार दिया । जब रूस में ये हड़ताल हुई थी, तो वहां जूलियन कैलेंडर चलता था । जिसके अनुसार उस दिन 23 फ़रवरी थी । दुनिया के बाक़ी देशों में प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर में वो तारीख़ 8 मार्च थी । इसीलिए तब से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस आठ मार्च को मनाया जाने लगा ।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को औपचारिक मान्यता वर्ष 1975 में उस वक़्त मिली, जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे मनाना शुरू किया । जिसे बाद में संयुक्त राष्ट्र ने वार्षिक आयोजन की मान्यता दी । लोगों से ये अपील की गई कि दुनिया के सभी देश और सभी नागरिक मिल कर ऐसा विश्व बनाएं, जहां महिलाओं और पुरुषों को बराबरी के अधिकार मिलें ।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को पहली बार 1996 में एक थीम के तहत मनाया गया था । उस वर्ष संयुक्त राष्ट्र ने इसकी थीम तय की थी -‘विगत का उत्सव, भविष्य की योजना’ (Celebrating the past planning for the future)।

2023 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम थी – डिजिटऑल: लैंगिक समानता के लिए प्रौद्योगिकी और नवाचार’ है एवं 2024 में इसकी थीम है ” महिलाओं में निवेश करे, प्रगति में तेजी लाएं ” (Invest in women : accelerate progress)।
वैश्विक स्तर पर महिलाओं की सहभागिता
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस एक ऐसा दिन बन गया है, जिसमें हम समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, खेलकूद, विज्ञान, अंतरिक्ष, शिक्षा, प्रशासन आदि लगभग सभी क्षेत्र में महिलाओं द्वारा की गई सहभागिता एवं उनके प्रगतिपथ का उत्सव मनाते हैं ।
वैश्विक स्तर पर महिलाओं का सभी क्षेत्रों में समुचित योगदान रहा है एवं भागीदारी है ।

यू के, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जर्मनी, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि देशों के राष्ट्राध्यक्ष महिलाएं रही है । वर्ष 1960 में विश्व में सर्वप्रथम श्रीलंका की राष्ट्राध्यक्ष सिरिमाओ भंडारनायके बनी थी। तब से लेकर अभी तक 70 से अधिक देशों की 110 से अधिक महिलाएं राष्ट्रीय नेता बनी है ।
64 महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में नोबल प्राइज प्राप्त हो चुका है ।

कई उद्यमों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भागेदारी है ।

अंतरिक्ष, खेलकूद, मनोरंजन, शिक्षा, व्यवसाय, कानून, चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की सार्थक भूमिका है ।
कुछ क्षेत्र तो ऐसे है जिन्हे महिलाएं ही निभा सकती है ।
इस दिन लोग बैंगनी रंग के कपड़े पहनते है ।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का रंग बैंगनी, हरा और सफेद माना जाता है। “बैंगनी रंग न्याय और सम्मान का प्रतीक है। हरा रंग आशा जगाता है, जबकि सफेद रंग पवित्रता का प्रतीक है।”

भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस
सरोजिनी नायडू ने औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अपने दृढ़ चरित्र और दृढ़ विश्वासों की बदौलत, सरोजिनी नायडू पूरे देश में अनगिनत महिलाओं के लिए एक प्रेरणा श्रोत रही है । महिलाओं के अधिकारों, स्वतंत्रता आंदोलन और अन्य क्षेत्रों में उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए, सरकार ने औपचारिक रूप से
उनके कार्यों और महिलाओं के अधिकारों के लिए उनकी भूमिका को देखते हुए 13 फरवरी 2014 से प्रतिवर्ष भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत की गई ।
उनके जन्मदिन पर भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन देश के भीतर सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में महिलाओं की उपलब्धियों के जश्न को रेखांकित करता है । उनका जन्म 13 फरवरी 1879 को हुआ था ।
भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस – एक संस्मरण उत्सव
राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं की उपलब्धियों का उत्सव है ।
महिलाओं ने व्यवसाय, खेल, फैशन सहित कई क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं की असाधारण उपलब्धियों को पहचानने और उनका जश्न मनाने के लिए एक अनुस्मरण के रूप में कार्य करता है।
वर्तमान में भी भारतीय महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है । महिलाएं देश के विकास में पूर्ण सहभागिता, जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही है ।
राजनीति में – राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्म एवं श्रीमती प्रतिभा पाटिल, प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी, राज्यपाल सरोजनी नायडू, फातिमा बीवी, पद्मजा नायडू आदि मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी, नंदिनी सतपथी, शीला दीक्षित, जय ललिता, मायावती, वसुंधरा राजे, ममता बनर्जी आदि
उद्यमी वंदना लूथरा, किरण मजमुदार शा, सुची मुखर्जी, अदिति गुप्ता, ऋतु कुमार, इंद्रा नूई, फाल्गुनी नायर, खुशबू जैन
वैज्ञानिक- दर्शन रंगनाथन, असीमा चटर्जी, डॉ कादम्बिनी गांगुली, जानकी अम्माल
अंतरिक्ष कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, सिरिशा बंडला
स्पोर्ट्स पी टी ऊषा, मेरीकॉम, मिताली राज, साइना नेहवाल, पी वी सिंधु, दीपिका पल्लीकल, मोनिका बत्रा, सानिया मिर्जा, प्राची तेहलाम, प्रतिमा सिंह आदि
ब्यूरोक्रेट्स ऊषा शर्मा, नीलकमल दरबारी, वीनू गुप्ता
अधिवक्ता(Advocates) करुणा नंदी, वृंदा ग्रोवर, फ्लेविया अग्निस, इंदिरा जयसिंह, मीनाक्षी लेखी, पिंकी आनंद;
बैंकर अरुंधति भट्टाचार्य, नैना लाल किदवई, चंदा कोचर, शिखा शर्मा, कल्पना मिरपरिया, रंजना कुमार;
सनदि लेखाकार(CA ) विशाखा मुले, दिव्या सूर्या देवड़ा, नंदिनी अग्रवाल;
डॉक्टर इंदिरा हिंदुजा, आनंदी बाई जोशी, कादम्बिनी गांगुली, कामिनी राव;
अभियंता (Engineers) राजेश्वरी चटर्जी, टेसी थॉमस;
13 विश्व विद्यालय की उप कुलपति महिलाएं है ।
भारतरत्न विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट भूमिका के निर्वहन से 53 में से 5 महिलाओं को यह उपाधि प्राप्त हो चुकी है।

राजनीति में महिलाओं की सहभागिता बढ़ने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक 128वां संविधान संशोधन विधेयक जिसमे संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है, पारित किया गया है ।
सभी प्रकार की गतिविधियों में महिलाओं की सहभागिता बढ़ रही है । महिलाओं के विकास के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध है । महिलाओं पर निर्भर है कि इन अवसरों का समुचित उपयोग कर अपनी भागिता बढ़ाती रहे ।
महिलाओं की सबसे बढ़ी दुश्मन महिलाएं स्वयं होती है ।
1) पुत्री की कोख में हत्या एक महिला द्वारा ही की जाती है ।
2) मेरे या मेरी बहु के पुत्री नहीं पुत्र हो ।
3) तुलनात्मक रूप से माताएं अपनी पुत्री के बजाय पुत्र की अच्छी देख – रेख करती है।
4) सामान्यत: दहेज की मांग महिलाएं करती है ।
5) सामान्यत: चकला चलाने वाली मुखिया एक महिला ही होती है ।
6) जानते बूझते महिला ही सौत बनती है ।
आदि ।
महिलाओं को ऐसे दुष्कृत मार्ग से बचना होगा ।

जैन समाज की महिलाएं भी देश के उत्थान में किसी से पीछे नहीं है । यह उल्लेख करना आवश्यक है कि भारत प्राचीन काल से ही महिलाओं को बराबरी का अवसर एवं अधिकार का द्योतक रहा है । महिलाओं का आरंभ से ही उच्च स्थान रहा है । जैन समाज में महिलाओं का आदिकाल से ही योगदान जारी है । हुंडावसर्पणी के तृतीय काल सुषमा – दुषमा काल के अंतिम चरण में जब भोगभूमि शने: शने: कर्मभूमि में परिवर्तित हो रही थी तभी से महिलायें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही है। जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान आदिनाथ ने कल्प वृक्ष लुप्त होने के पश्चात् जनसाधारण को असि, मसि, कृषि, शिल्प, विद्या एवं वाणिज्य का ज्ञान सुनियोजित जीवन यापन हेतु दिया एवं अपनी सुपुत्रियों ब्राह्मी को लिपि विद्या एवं सुंदरी को अंक विद्या का ज्ञान कराकर उनके द्वारा इन विद्याओं को आगे बढ़ाया । आगे चलकर ब्राह्मी ने 3 लाख साध्वियों का नेतृत्व किया व 18 लिपियां सिखाई एवं सुंदरी ने 60 हजार वर्ष तक आयंबिल उग्र तप किया । इन्हे सम्मिलित करते हुए जैन धर्म में विभिन्न क्रियाओं की महारथी सोलह महासतियां हुई है ।
16वीं शताब्दी में मूड़बद्री में जैन वीरांगना अब्बाकव्या रानी ने पुर्तगालियों को अपने पराक्रम से पराभूत किया ।

वर्तमान में हम देख सकते है कि प्रकट रूप में जैन समाज की एक भी महिला का किसी भी क्षेत्र में कोई योगदान नहीं है । सामान्यतौर पर लगता है की जैन समाज की महिलाएं बहुत पीछे है । सभी को ज्ञात है की कुल मिलाकर जैन समाज का देश के चंहुमुखी विकास में महत्वपूर्ण योगदान है । इस योगदान में महिलाओं की बराबरी की भूमिका होती है । जैन समाज की महिलाएं अपने परिवार का पूरा ध्यान रखती है । सवेरे जल्दी उठना, खान -पान , घर का रखरखाव, बड़े बुजुर्गो का ध्यान, बच्चो की पढ़ाई एवं संस्कार देना, उचित वातावरण प्रदान करना, रिश्तेदारी निभाना, धार्मिक कार्यों एवं क्रियाओं में भाग लेना आदि दैनिक जीवन के सभी सामान्य कार्य महिलाओं द्वारा ही संपादित किए जाते है । महिलाओं द्वारा एक महत्वपूर्ण क्षेत्र, जिसमे सामान्यतया कैजुअल दृष्टिकोण रखा जाता है, की जिम्मेदारी का निर्वहन करने के कारण जैन समाज का पुरुष वर्ग अपनी पूर्ण क्षमता से काम कर पाता है, अंततोगत्वा समाज की उच्च स्थिति बनाए रखने में सक्षम रहता है ।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर महिलाएं संकल्प ले सकती है कि वे महिलाओं के सर्वांगीण विकास में भागीदार बनकर एक उत्कृष्ट समाज का निर्माण करने में अपना जीवन न्यौछावर करने हेतु तत्पर रहेंगी।

संकलन :
भागचंद जैन मित्रपुरा
अध्यक्ष अखिल भारतीय जैन बैंकर्स फोरम जयपुर ।

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