सांगानेर जयपुर में गणाचार्य गुरुदेव विराग सागर जी महाराज की सुसमाधि पर भारतवर्षीय विनयांजलि सभा का हुआ आयोजन पावन सान्निध्य मुनिश्री महिमा सागर जी एवं गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी ससंघ

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फागी संवाददाता

जैन जगत की महान विभूति, सर्वाधिक दीक्षा प्रदाता, विशाल संघ के अधिनायक, युगप्रतिक्रमण प्रवर्तक, नव आचार्य गणों के गणाचार्य 108 श्री विराग सागर जी महामुनिराज की सल्लेखना पूर्वक सुसमाधि मरण पर उनको सुविज्ञ शिष्या प. पू. भारत गौरव, गणिनी आर्यिका 105 विज्ञाश्री माताजी ससंघ एवं मुनिश्री 108 महिमा सागर जी महाराज ससंघ सान्निध्य में श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र संघी जी मंदिर सांगानेर, जयपुर में भारतवर्षीय विनयांजलि सभा (वैराग्य सभा) का आयोजन हुआ। इस अवसर पर सम्पूर्ण जयपुर समाज के श्रावक गण उपस्थित थे। आचार्य श्री के छायाचित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम की शुरूआत हुई। श्रमण संस्कृति संस्थान की बालिकाओं द्वारा मंगलाचरण की सुंदर प्रस्तुति गुरु गुणगान द्वारा की गई। विनयांजलि के क्रम में पंडित जयकुमार जी शास्त्री सांगानेर, अतिशय क्षेत्र पद्मपुरा जी के मंत्री एडवोकेट हेमन्त जी सौगानी, प्राचार्य अरुण शास्त्री, मालवीय नगर से. 3 अध्यक्ष सी. एल. जैन साहब, कैलाशचन्द जी जैन, श्रमण संस्कृति संस्थान के मंत्री सुरेश कासलीवाल , ने गुरू के गुणगान कर विनयांजलि समर्पित की। प्रबन्ध कारिणी कमेटी श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र मंदिर संघीजी सांगानेर के द्वारा इस विनयांजलि सभा का आयोजन किया गया। अध्यक्ष महावीर बज मंत्री नरेन्द्र पाण्ड्या ने पूज्य आर्यिका विज्ञाश्री माताजी के चरणों में प्रवचन हेतु निवेदन किया। परम आराध्य गुरूवर की आकस्मिक समाधि की घटना सुनकर मेरी आत्मा काँप गई, शरीर शिथिल सा पड गया, सोचने लगी क्या यह सत्य है या कोई स्वप्न देख रही हूँ। सुना था कि 2024 का साल अच्छा नहीं है, लेकिन यह तो सपने में भी नहीं सोचा कि हमारे सर से गुरुदेव का वरदहस्त छिन जायेगा। जिस मजबूत नींव पर लगभग 500 शिष्यों रूपी इमारत खड़ी थीं, आज वह इमारत नींव के अभाव में अपने बल पर खड़ा होने का साहस नहीं जुटा पा रही है। विगत फरवरी माह में कृष्ण पक्ष और अष्टमी के दिन ही संत शिरोमाणी विद्यासागर जी महाराज की समाधि हुई और अभी जुलाई माह में कृष्ण पक्ष और चतुर्दशी के दिन गणाचार्य विराग सागर जी महाराज की समाधि हुई। जैन जगत के महान दो आचार्यों का वियोग संपूर्ण जैन समाज के लिए दुःख का कारण है। माताजी ने आचार्य श्री का संस्मरण सुनाते हुए कहा कि- तपस्वी सम्राट सन्मति सागर जी ने बालक अरविंद की परिक्षा ली। भारत का नक्शा बना हुआ कागज फाड़कर उन्हें जोड़ने के लिए कहा। बालक अरविंद ने अपनी बुद्धिमत्ता से पीछे बना हुआ मनुष्य का चित्र जोड़कर आचार्य श्री को दिखाया। बालक की बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर उन्हें कमण्डल पकड़कर चलने को कहा। उस दिन से वह बालक अरविंद ऐसा खिला जो वैराग्य पथ पर विरागसागर नाम से प्रसिद्ध हुआ। आज उनके द्वारा हजारों-लाखों मनुष्य धर्म में जुड़ रहे है। आज हम उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाये जैसे उन्होंने अपने शिष्यों को यथायोग्य स्थान देकर जैन धर्म रूपी रथ का संचालन सुव्यवस्थित किया। उसी तरह हम भी धर्म क्षेत्र में राग – द्वेष से दूर रहकर आने वाली पीढ़ी को यथायोग्य निर्देशन देकर धर्म मार्ग में लगाये ।

राजाबाबू गोधा जैन गजट संवाददाता राजस्थान

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