इंदौर। जीवन आपका अस्त-व्यस्त है क्योंकि आपका अपने जीवन के प्रति शुभ भाव नहीं हैं। जिन्होंने स्वभाव की प्राप्ति कर ली वह वंदनीय हैं। जिन शासन में नाम की वंदना नहीं होती गुणों की वंदना होती है चाहे श्रावक हो या श्रमण जिसमें जितने अंश मे गुण है वह उतने अंश में वंदनीय है। जैसे जैसे गुणों का वर्धन होता है पूज्यता बढ़ती है और गुणवान के प्रति श्रद्धा भी बढ़ती है।
यह उद्गार आज मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने समोसरण मंदिर कंचन बाग में धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। आपने कहा कि हमारे यहां परमात्मा, परमात्मा नहीं बनते, भक्त ही परमात्मा बनते हैं।इस दृष्टि से प्रत्येक जीवात्मा परमात्मा है सभी का कर्तव्य है कि परिस्थिति अनुकूल ना होने पर भी धैर्य और सभी जीवो के प्रति समता भाव रखें, राग द्वेष की परिणति घटाएं। हमारा प्रयास कर्मों की स्थिति को भी घटाने का होना चाहिए और यह चिंतन करना चाहिए कि स्वभाव मेरी संपत्ति है और कर्मों ने उस पर कब्जा कर रखा है हमें कर्मों से अपनी संपत्ति छुड़ाना है। धर्म सभा को मुनिश्री अप्रमित सागर जी महाराज ने भी संबोधित किया। सभा का संचालन हंसमुख गांधी ने किया।