कोटा (पारस जैन ‘पार्श्वमणि’, संवाददाता)। ना तेरा है ना मेरा है यह दुनिया रैन बसेरा है। यह संसार मकड़ी के जाल के समान है। जिस तरह से मकड़ी दूसरों के लिए जाल बनाती है और एक दिन उसी जाल में खुद फंसकर मर जाती है। ठीक उसी प्रकार यह मानव चौरासी लाख योनियों में भटक कर मनुष्य पर्याय प्राप्त करता है और दुर्लभ चिंतामणि रत्न के समान इस मनुष्य पर्याय का महत्व नहीं समझता। क्रोध, लोभ, मोह, माया के वशीभूत होकर उसका सम्पूर्ण जीवन व्यर्थ चला जाता है। संसार एक प्रतिक्रिया है जो दोगे वही मिलेगा जो बोओगे वही फसल काटनी पड़ेगी। जैसी करनी वैसी भरणी की कहावत चरितार्थ है। उक्त हृदयोद्गार परम पूज्य मुनिश्री अमित सागर जी महाराज ने आर. के. पुरम स्थित दिगम्बर जैन त्रिकाल चौबीसी जैन मंदिर में विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। धर्म सभा का सफल संचालन पारस जैन ‘पाश्र्वमणि’ पत्रकार एवं मनीष जैन ने किया।
मंदिर समिति के अध्यक्ष महावीर जैन, महामंत्री पवन पाटोदी, कोषाध्यक्ष ज्ञानचंद जैन ने बताया कि धर्मसभा में मंगलाचरण पाठ, मंगल दीप प्रज्जवलन, शास्त्र भेंट की क्रियाएं भी की गई। पूज्य मुनि श्री अमित सागर जी महाराज ने आगे कहा कि अफसोस तो यह नहीं है कि लोग मझधार में डूब जाते हैं। अफसोस तो यह कि लोग किनारे आकर डूब जाते हैं। दुर्लभ चिंतामणि रत्न के समान मानव पर्याय है। मानव हर चीज की कीमत लगाता है परंतु जिस दिन उसे स्वयं की कीमत पता चलती है तो समस्त चीजों की कीमत शून्य हो जाती है। जीवन पानी की बूंद के समान है कल और पल का कोई भरोसा नहीं है। भगवान महावीर के सिद्धांतों पर चलकर ही विश्व में शांति स्थापित हो सकती है। जैन धर्म दर्शन के अनेकांत और स्याद्वाद के सिद्धांतों से संपूर्ण समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। धर्मसभा में प्रकाश पाटनी, पारस जैन, रूप चंद जैन, पंकज जैन, दिलीप बडज़ात्या उपस्थित थे।