मन के सारे सुख का खेल कार्य की सफलता में है.. असफ़लता में नहीं – आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी

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औरंगाबाद संवाददाता नरेंद्र /पियुष जैन- परमपूज्य परम तपस्वी अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर’ जी महामुनिराज सम्मेदशिखर जी के बीस पंथी कोटी में विराजमान अपनी मौन साधना में रत होकर अपनी मौन वाणी से सभी भक्तों को प्रतिदिन एक संदेश में बताया कि मन के सारे सुख का खेल कार्य की सफलता में है.. असफ़लता में नहीं..!

सफलता के आनंद में तृप्ति का सुख समाहित है, और असफ़लता का दुःख सभी तरह के सुख चैन को छीन लेता है। जैसे आधी-अधूरी पढ़ाई, अधूरी कहानी, अधूरी यात्रा, अधूरी बात, अधूरा लक्ष्य, अधूरा चित्र, अधूरा भोजन मन में क्षोभ का भाव छोड़कर चला जाता है। सभी आधे-अधूरे कार्यों को पूरा करना हमारे आपके हाथ में भी नहीं है। यह सब नियति, भाग्य और कर्म का खेला है।जैसे मदारी के हाथ में रस्सी होती है, पतंग की डोर उड़ाने वाले के हाथ में होती है, उसी प्रकार हम प्रयास और पुरूषार्थ कर सकते हैं — होना नहीं होना, ये नियति के हाथ में है। इसका मतलब यह नहीं कि आप हाथ पर हाथ रखकर, निठल्ले होकर बैठ जाओ और कहो जो जब, जैसा, जिस काल में होना होगा, वह तब वैसा हो जायेगा। हम क्यों मेहनत करें। फिर तो यह निष्क्रियता हो जायेगी।

मनुष्य का मन कार्य की सफलताओं के सुख के लिए बना है, ना कि अफसोस के दलदल में डूबने के लिए। जीवन उत्सव उनके लिए है, जो उत्साह से जीवन जीना जानते हैं।जो उत्साह से जीवन जीते हैं, उनके लिये छोटी छोटी सफलतायें भी सुख आनंद प्रदान कर जाती है। इसलिए अपने प्रत्येक दिन के आज को छोटी छोटी सफलताओं की खुशी देना प्रारंभ करो। फिर यही सुख मन की शान्ति और चेहरे की प्रसन्नता में कारण बन जायेगा।जैसे आप उपवास नहीं कर सकते, तो कोई बात नहीं, एकासन करो, एकासन नहीं कर सकते, तो दो बार भोजन करो, दो बार से काम नहीं चल रहा, तो चार बार खाओ, चार बार से काम नहीं चल रहा, तो आठ बार खाओ, आठ बार से काम नहीं चल रहा, तो सोलह बार खाओ लेकिन भले आदमी — दिन में खाओ, रात को कुछ भी मत खाओ।

कहने का मतलब है – कुछ नहीं से तो कुछ करना ही अच्छा है। बड़ी सफलता नहीं मिले तो छोटी छोटी सफलताओं में मन को खुश रखकर जीवन का आनंद उठा सकते हैं।

सौ बात की एक बात

जैसे कड़वी गोलिया चबाई नहीं निगली जाती है, उसी प्रकार जीवन में असफ़लता, अपमान, धोके जैसी कड़वी बातों को सीधे गटक जाओ। यदि उन्हें चबाते रहोगे यानि उन बातों को याद करते रहोगे तो आपका जीवन भी कड़वा हो जायेगा…!!! नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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