पर्वाधिराज पर्युषण पर्व,
वर्ष में तीन बार आते है।
जिनालयों में भक्तिभाव से,
पूजा अर्चना हम करते है।।1।।
उत्तम क्षमा से शुरू होते,
क्षमा वाणी तक हम मनाते है।
दशलक्षण धर्म हमारे,
जीवन में परिवर्तन लाते है।।2।।
छोटे-छोटे अणु व्रतो से,
मन को हम शान्त करते है।
गुरूओं के सानिध्य में हम,
दस लक्षण धर्म का अर्थ समझते है।।3।।
नई पीढ़ी में संस्कारों का बिजारोपण होता,
देवशास्त्र और गुरूओं के दर्शन हो जाते है।
दस दिन तक धर्म चर्चा चलती,
चार प्रकार के दान हम करते है।।4।।
मान कषाय कम हो जाती,
जब पावन पयुर्षण पर्व आ जाते है।
लोभ स्वतः ही कम हो जता,
पयुर्षण पर्व में प्रतिष्ठानों को बंद हम रखते है।।5।।
वर्ष भर में कटु शब्द कहे हो तो,
क्षमा से हम क्षमावाणी पर्व मनाते है।
‘उत्सव जैन’ कहता प्यारे,
ऐसा श्रेष्ठ कुल हमें मिला जो पयुषर्ण पर्व मनाते है।।6।।
(कवि उत्सव जैन)
मु.पो. नौगामा त. बागीदौरा
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