हक़दार बदल दिये जाते हैं, किरदार बदल दिये जाते हैं.. ये संसार स्वार्थी है मित्रो, यहाँ मन्नत पूरी ना हो तो – रिश्ते तो क्या —? भगवान तक बदल दिये जाते हैं…! अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर

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औरंगाबाद (पीयूष कासलीवाल)-  नरेंद्र अजमेरा! ये जीवन परमात्मा का पुरस्कार है। कुदरत की सौगात है। प्रकृति का उपहार है। लेकिन मैं कहता हूं कि मनुष्य जीवन एक अवसर है, आदमी जो होना चाहे, वह हो सकता है। उसे सिर्फ अपने को, अपनी आदतों को, साधने की जरूरत है। अगर अंगुलियाँ साधना आ जाए, तो — लोग जिसे तुंबा कहते हैं ना — वह तंबूरा बन सकता है।

जिसे तुम बाँस की टोकरी कहते हो, वह बाँसुरी बन सकता है। अभी तुम तुंबा हो, तुम्हें तंबूरा बनना है। बाँस की टोकरी से बाँसुरी बनना है। अभी तुम सिर्फ एक कली हो, तुम्हें फूल बनना है। अभी तुम्हें खिलना है और खिलकर महकना है। कली में गंध नहीं होती, गंध तो फूल में हुआ करती है। अभी तुम में, संयम और चरित्र की गंध पैदा होना बाकी है। कहीं ऐसा ना हो, यह कली खिलने से पूर्व ही काल के गाल में समा जाए और तुम कहो, मेरा जीवन कोरा कागज – कोरा ही रह गया। अगर कदाचित ऐसा हुआ तो तुम्हारा तो यहाँ आना ही व्यर्थ हो जाएगा। तुम फूल बनकर ही झड़ना.. तप त्याग संयम आचरण की खुशबू बिखेर कर ही मरना..!नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद

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