हमारे गुण ही हमारी श्रेष्ठता का पैमाना है। सरलता, सहजता, और विनम्रता से हम महानता की सीढ़ियां भी चढ़ सकते हैं। एक सन्त ने मछली पकड़ने का जाल बिछाते हुए मछुवारे से कहा – तुम मेरे पीछे आओ, हम तुम्हें मनुष्य को पकड़ना सीखा देंगे। सन्त और शिष्य में सम्वाद हुआ। शिष्य ने पूछा – गुरूदेव संसार में सबसे श्रेष्ठ कौन है? सन्त ने मुस्कुराते हुए कहा – जो सबसे प्रेम करता है,, जो दूसरों को अपने से महान समझता है, जियो और जीने दो का पाठ पढ़ता और पढ़ाता है,, वह इन्सान सबसे श्रेष्ठ है। सर्वश्रेष्ठ होने के लिये मनुष्य को अपनी दावेदारी रचना पड़ती है।
अपने गुण और अवगुण की पहचान करनी पड़ती है। जो विरोध में शोध, बुराई में अच्छाई, अवगुण में गुण, गाली में गीत, अपमान में सम्मान को तटस्थ भाव से अपनी सीमाओं को पहचान सकता है,, वही श्रेष्ठता की कसौटी पर खरे कंचन की तरह चमक सकता है अभी हम सब संसार के मैदान में रेस के घोड़े की तरह दौड़ रहे हैं जिसमें गति तो है पर दिशा नहीं, रेस तो है पर मंजिल नहीं, मेहनत तो है पर फल नहीं।
अपने जीवन के वृक्ष पर, सुख, शान्ति, प्रेम, सदभाव, मैत्री के फल लगायें,, अपने पड़ोसी को रोज खिलायें और ज़िन्दगी भर खिल खिलायें। क्योंकि – श्रेष्ठता का लाइसेंस पड़ोसी ही देगा। *पत्नी और पड़ोसी को खुश रखना ऐसा ही है,, जैसे तैंतीस करोड़ देवी देवताओं को खुश रखना हो…!!!
– नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल, औरंगाबाद।