अन्तर्राष्ट्रीय होम्योपैथी डाक्टर “मणी” जैन

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नन्दीश्वर विधान विशेषतौर पर अष्टानिका पर्व में किया जाता है।अष्टानिका पर्व साल में तीन बार कार्तिक,फाल्गुन एवं अषाढ माह में आता है, इन पर्वों के दिनों के अलावा भी अन्य समय में इस विधान को विशुद्ध भावों से किया जा सकता है जो यह विधान करता है वह देवता बन साक्षात जाकर देवालय में पूजा विधान करता है । इस विधान को सुनने या करने से देवगति का बन्ध होता है।नन्दीश्वर द्वीप ये अकृतिम चैत्यालय होते हैं ।नन्दीश्वर द्वीप में 52जिन चैत्यालय होते हैं,व एक दिशा में 13चैत्यालय होते हैं व चारों दिशाओं में 52 होते हैं।इन 52 चैत्यालय के गर्भगृह में 108 जिनप्रतिमाऐं होती है जो रत्नजडित होती है । इस प्रकार इन नन्दीश्वर के चैत्यालयों में कुल 5616 प्रतिमायें होती है।ये प्रतिमाएं पद्मासन होती हैं।इन मंदिरों में केवल देव ही जा सकते हैं,मनुष्य नहीं।मनुष्य केवल मानसोत्तर पर्वत तक ही जा सकते हैं,उसके पार तो रिद्धिधारी मुनी महाराज भी नहीं जा सकते हैं।जबलपुर (पीसनहारी मढिया) व श्री सम्मेदशिखरजी में काफी प्राचीन नन्दीश्वर द्वीप रचनायें हैं,जंहा हजारों भव्यजीव दर्शनों व पूजापाठ को आते हैं। नन्दीश्वर द्वीप में 4 अर्जन गिरी ,16 दधिमुख व 32 रतिकर जिन मंदिर होते हैं । इन मंदिरों में देव पूजा करते हैं ,कुछ देव ढोल बजाते हैं व देवियां नाचती-गाती है।इसमें पूजन सामग्री देवगण कल्पवृक्षों से सूक्ष्म जीव रहित प्राप्त करते हैं ।नन्दीश्वर द्वीप एक शाश्वत पर्व है।मध्यलोक अनेक द्वीप व महाद्वीप से मिलकर बना है,जिसमें नन्दीश्वरोद महासागर है जो जम्बूद्वीप से 8 वें नम्बर का है,जम्बूदीप से इसे नन्दीश्वर समुद्र ने घेर रखा है।इन मंदिरों में नवदेवताओं मे से केवल जिन चैत्य व चैत्यालय ही होते हैं।यंहा रात्रि नहीं होती है।यंहा 1000 योजन वाले कमल होते हैं।नन्दीश्वर द्वीप का विस्तार एक सो तरेसठ चौरासी लाख योजन है। आज नन्दीश्वर द्वीप की इन बातों को जानने के बाद आज की पूजायें शुरु हुई जिनको बडे भक्तिभाव से डां शान्ति जैन ” मणि “,श्रीमति प्रतिभा गोधा व श्रीमति मुन्ना सोगानी ने कराई। आज तक 20पूजायें पूरी हो गई। श्री कैलाशजी सौगानी ने इस सम्बन्ध में अनेक बातें बताई। संयोजक डां.एम.एल जैन ” मणि ने सभी श्रावक-श्राविकाओं का आभार व्यक्त किया।

राजाबाबु गोधा जैन गजट संवाददाता राजस्थान

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