*भाद्र पद शुक्ल चतुर्दशी 17 सितम्बर पर विशेष*
भाद्र पद शुक्ल चौदस अर्थात अनंत चतुर्दशी का जैन धर्म मे विशेष महत्व है तो वही हिन्दू धर्म मे इस दिवस को भगवान विष्णु का एक विशेषण मानते हैं। एक किवदंती है कि इस दिन 14 गांठो से युक्त धागा पुरुषों द्वारा 14 वर्षो तक बांधा जाता है, जिससे दुख दरिद्रता दूर होती है। वही प्रथमेश गणेश जन्मोत्सव के उत्सव का चतुर्थी से प्रारम्भ होने वाले दस दिवसीय आयोजन का समापन भी अनन्त चतुर्दशी पर विसर्जन के साथ होता है।
अनंत शब्द का साधारण शाब्दिक अर्थ जिसे गिना नहीं जा सकता अर्थात जिसकी गिनती नहीं हो सकती होता है। इसे असीम,अपार,बेहद जैसे पर्यायवाची शब्दों से भी सुशोभित किया जाता है।
अनंत शब्द का संधि विच्छेद ‘अन् + अंत’ होता है। अनंत शब्द का मतलब है ‘बिना- अंत’. यह एक संस्कृत शब्द है। अर्थात जिसका कोई अंत नहीं,वह अनंत है। इसी विचारधारा को लेकर जैन धर्म में दसलक्षण महापर्व भाद्र शुक्ल पंचमी से चतुर्दशी तक मनाया जाता हैं। प्रत्येक दिवस क्रमशः क्षमा मार्दव,आर्जव,शौच,सत्य, संयम, तप,त्याग,आकिंचन,ब्रह्मचर्य जैसे अनन्त फलदायी गुणों को धारण कर अनन्त कर्मो की निर्जरा कर अनंत पुण्य का आश्रव कर जीवन को वैराग्य की ओर अग्रसर किया जाता है।
जैन धर्म मे भी अनन्त चतुर्दशी व्रत की कथा में सोम शर्मा और उसकी धर्मपत्नी सोमा का उल्लेख मिलता है। वो भी अनंत चतुर्दशी का 14 वर्ष तक व्रत रखते हैं। व्रत के दौरान रेशम(सूत) के धागे का अनंत बना प्रत्येक गांठ पर 14 गुणों का चिंतवन कर 14 गांठ लगा कर प्रभु के समक्ष अभिषेक करके अनंत को दाहिने भुजा या गले मे बांधते हैं। स्वयं की दरिद्रता को शनै शनै दूर करते हुए उन्नति की ओर बढ़ते हैं और पुण्य के उदय से अगले भव में “राजा अनंतवीर्य” बन उसी भव में मोक्ष को प्राप्त होते हैं।संभवतया इस कारण भाद्र माह की शुक्ल चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है।
जैन धर्म मे अनंत शब्द से आशय यह भी है कि अनंतानुबंधी कषायों का शमन कर, अनंत पुण्य का अर्जन करना। इस दिवस उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म का पालन किया जाता है। जैन श्रावक श्राविकाओं द्वारा व्रत-उपवास आदि रखें जाते हैं। जैन धर्म के 12 वें तीर्थंकर वासुपूज्य भगवान का निर्वाण कल्याणक भी मनाया जाता है और इसी के साथ दसलक्षण पर्व का समापन हो जाता है।
*संजय जैन बड़जात्या कामां,सवांददाता जैन गजट*